Friday 2 August 2013

परिचय और उद्देश्य

पहले जब किसी का लिखा कुछ भी पढता था तो कई बार हैरान होता था कि लेखक इतना कुछ कैसे सोच लेते हैं? मगर जब खुद लिखने लगा तो पता चला कि उन्हें सोचने की जरुरत नहीं होती, अपने आप ही उनकी नजर ऐसी हो जाती है कि जो किसी और के लिए आम बात हो, या आसानी से अनदेखा कर दिया जाये उसमे भी ना जाने क्या क्या देख लेते हैं, अक्सर वो चेहरे जो भीड़ में रह कर भीड़ का ही हिस्सा हो जाने की कोशिश करते है, वो नजर जाते है, साथ ही उनके चेहरे पर फैली बेबसी और भी अनगिनत भावनाएं जो अपने अस्तित्व को नकारने का भरसक प्रयास करती हैं, लेखक की नजर में जाती है और वो सब कुछ जब लिखा जाता है तो लगता है जैसे कोई बिलकुल नई कहानी निकल कर रही है।
मैं भी जब अपने दफ्तर जाता हूँ तो अक्सर कुछ न कुछ ऐसा नजर आ जाता है जिस पर शायद दुनिया की निगाह या तो पड़ती नहीं या फिर कोई गौर करना नहीं चाहता। खैर इन आँखों में ना जाने क्यूँ किसी की बेबसी, मजबूरी, खुद्दारी और भी ना जाने क्या क्या नजर आ जाती है और फिर अपने आप से नजरें चुराने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचता।  कोशिश करूँगा आपसे उन सब बातों को, उन लोगों को और वो सब कुछ साझा कर सकूँ जो रास्ते में नजर आता है और दिल में उतर जाता है।  

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